शुक्रवार, फ़रवरी 4

रेल गाड़ी-भाग 2

यह कहानी पूर्ण रूप से काल्पनिक है इसका किसी भी वेक्ति , वस्तु , या स्थान से कोई सम्भन्ध नहीं है।

रेल गाड़ी-भाग 1


चलती हुई ट्रेन में यूही मेरी नजर घंडी की चलतीं सुईं पर गई, मेने देखा और महसूस किया की, वो उतनी ही तेज चल रही थी जितनी कि हमेशा चलती है पर हम इंसानों के चलने की गति कुछ ज्यादा हि होती हा रही है। आज लोग एक पल को सैकड़ो सालो के बराबर जि लेते है। आज हम इंडिया मैं तो कल नेपाल में या सयाद स्वर्ग में निवास करने लगे।अरे भाई ये क्या मैं तो बताना हि भूल गया मैं अभी हूँ ट्रेन के अंदर, ट्रेन मे मैं हमेशा सफर नहीं करता इस लिए मेरी तो पहचान का कोई नहीं है यहाँ। कभी कभी कुछ लोग पहचान के मिल जाते है तो कुछ अंजन लोगों से हि मिल लेते है चलो फिर ट्रेन कि शैर पर, अरे ये क्या कुछ लोग ऐसे खड़े है बीच रास्ते चलने को जगह भी नहीं है।और ये क्या देख रहा हूँ कुछ ने तो अपना डेरा ही जमा लिया है।सीट पर बैठे या सो जाए पर ये जनाब कहा मानते है नाचे हि बिछाकर सो गए कुछ का जुगाड़ देखो ऊपर मे चादर बांधकर उसमें सो गया। ऐसा लग रहा है जैसे ये ट्रेन हमर घर है या हम इस घर के मालिक।रेल का सफर होता हि है बड़ा प्यारा चाहे आप जो भी कहे।         

ओ हो तो आप ये जानना चाहते हो कि ये फोटो किस कि है? अरे धीरे-धीरे बोलो मार पिटेगी, अच्छा तो सुनो,  ये तो मुझे भी नहीं पता ये कौन है, पर मैंने चुपके से ये फ़ोटो खींच ली। मेरे सामने हि कि सीट पर तो बैठी है।अब आप को बता दिया आप किसी को मत बताना और ऐसी छिछोरेपन वाली हरकतें भी नहीं करना कहीं पकड़े गए और पीट गए तो। मैंने तो ले ली अगर अगर पकड़े गया होता तो  मुझे तो...अरे भाई मैं भी पगलो की तराहा कुछ भी दिए जा रहा हूँ...

चलों अब कोई गाना सुन लेते है, है ना...
               "साजन मेरा उसपार है, मिलने को दिल बेकरार है।"
मुझे ना ऐसे गाने बहुत पसंद है, चलती हुई ट्रेन हरन मार्ता हुआ इंजेन और बहती हुई सुर्ख हवा ,लोग अपनी अपनी बातो में मसहूर और मैं आपके साथ यहाँ का हाल बता रहा हूँ।
 

 फिर मिलेंगे चलते चलते।

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