मंगलवार, अप्रैल 9

रेल गाड़ी - भाग 1


यह कहानी पूर्ण रूप से काल्पनिक है इसका किसी भी वेक्ति , वस्तु , या स्थान से कोई सम्भन्ध नहीं है।


बाङा हि शोरगुल हो रहा था, लोह पथ गामिनी तेज पो................. कि आवाज करते हुए एक प्लेटफार्म पर आकर रुक गयी।
कुछ हि पलों के बाद मेरे सामने वाली सीट पर एक अति सुन्दर कन्या बैठी।
उस पर मेरा ध्यान क्या गया, मानो मेरा तन मन और धङकन सब कुछ उसी का हो गया।
उसे एकटक देखता हुआ सोचने पर मजबूर हो गया कि वो सारा शोरगुल अचानक एक दम से कहा चला गया। वहां पर उसके और मेरे सिवा तेज ठन्डी हवा बह रही थी। चन्द्र प्रकाश चारों दिशाओं में फैला हुआ था। वो एक सरोवर के किनारे बैठी इठलाती हुई तैरती हुई बतखो पर कन्नड़ मार रही है। मैंने  तेज आवाज़ मे कहा 'ए लङकी' और तभी मैंने देखा कि मेरी आवाज़ सभी मौजूद यात्रीयो ने सुनी। बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि आप को कहा जाना है? उसने कहा मुझे दिल्ली जाना है। तभी मैंने कहा ये रेल दिल्ली नहीं जाती,तो वह इधर-उधर चर्चा करके मुझे धन्यवाद देकर प्लेटफार्म पर उतर गयी। और फिर वही शोरगुल के साथ लोह पथ गामिनी ने पो................. 
कि तेज आवाज़ लगाई और अपने लक्ष्य की ओर बढने लगी











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