गुरुवार, जून 23

अग्निवीर p2



अग्निवीर

बच्चे कि माँ - ये पापनी सुन मैं तुम्हें श्राप देती हूँ तुम्हारी मौत का करन मेरे बच्चे का खून बनेगा। और वो भी ज़मीन पर गिर कर अपने प्राण त्याग देती है।

मान्सी- चारू ले आओ उस खप्पर को मेरे पास मैं भी देखु कितनी ताकत है इस खून मे। (खप्पर अपने हाथ मे लेते हुए) मैं अब और इंतजार नहीं कर सकती चाहे तुम कितना भी दूर चलें जाओ मैं तुम्हें पा कर रहूंगी। मान्सी राजदारबार से मुस्कुराते हुए अपने रथ मे जा बैठती है। सार्थी चलो काबिले कि ओर हमें विश्कन्या से अभी मिलना है।

मुरारीलाल - भीमा जाओ सभी को संकेत दे दो।निसान गांव के बाहर पीपल के पेड़ पर लगाना। भीमा- जी महाराज ( बोल कर लाल झंडी लिए पीपल कि ओर बढ़ गया। मुरारीलाल भी अपनी पत्नी मंदाकिनी के साथ पीपल कि ओर बढ़ते है। भिमा के झंडा फहराते हि वहाँ कई लोग साधुओं के वेश मे एकत्रित होकर हर हर महादेव हर हर महादेव का जयकारा लगा रहे है।

मान्सी- विश्कन्या के मठ मे प्रवेश करते हुए। विस्कन्या आज मुझे तुम्हारी जरुरत है। विस्कन्या -कहो महारानी क्या समास्या है। जो आप को मुझ तक आना पड़ा। मान्सी- मत कहो मुझे महारानी जिसके सपने देखें वो किसी और का हो गया। ये राजमहल राजा के बिना अधूरा है और मैं भी उसके बिना अधूरी हूँ। मुझे वो चाहिए और उसे पाने को मैं किसी भी हद को पार कर सकती हूँ। विश्कन्या पता करो अभी वो कहा है? कैसे है? मैं उन्हें अभी देखना चाहती हूँ। विस्कन्या- मान्सी मैं तुम्हारे साथ हूँ पर अभी मैं ये काम नहीं कर सकती। क्योंकि मेरे गर्भ मे बच्चा है। यदि हमने ये पूजन विधि कि तो इसका कुछ ना कुछ समस्या उत्पन्न होगी। पास हि खड़े भुजंग नाथ बोले- जी महारानी ये सच है मेरी पत्नी के गर्भ से जो बच्चा जन्मेगा, उसमें आप के लाए बच्चे के खून का अंश मिल जाएगा। फिर हम जैसी संतान चाहते है वैसी नहीं होगी। उसमें बाहरी गुण दोष शामिल हो जाएँगे। मान्सी - मैंने कहा मुझे उसे देखना है अभी इसी वक्त। जी महारानी कहेकर विश्कन्या और भुजंग नाथ कुलदेवी कि पूजा आरम्भ करते है। तीनो हवन के पास बैठ कर आहुति दे रहे है। खप्पर मे रखे खून कि कुछ बुँदे आहुती देने के बाद तीनो उस खून को बराबर-बराबर बांट कर पी लिए। तीनो ने एक दूजे का हाथ पकड़ कर मंत्र जपने लगे। कुछ देर बाद हवन कुंड मे एक तीव्र प्रकाश का गुब्बार बनता है। उस गुब्बार मे कई एकत्रित होते जाने पहचाने चेहरे साधुओं के वेश मे दिखने लगते है। हर हर महादेव के जयकारे से अब विस्कन्या का मठ भी गूंजने लगा। देखो विश्कन्या , मंदाकिनी को ये मेरी दुश्मन है इसने मुझसे धोखा किया है। और इसके पेट मे पल रहा बच्चा तुम्हारा दुश्मन है। मंदाकिनी को अचानक दर्द शुरू हो जाता है वो जोर से आवाज देती है- स्वामी केशव ये सुनते हि मुरारीलाल वहा आता है। गुब्बार मे अचानक तस्वीरें धुंधली होने लगती है। वहीं विश्कन्या के पेट मे भी दर्द उठता है, ये देख कर भुजंग बाहर निकलते हुए सभी को पास आने के लिए आवाज लगाने लगता है। आस पास के सभी लोग एकत्रित हो जाते है। भुजंग - दसियो जाओ तुम्हारी महारानी कि मदद करो। ये सुनते हि कुछ औरते अंदर चली जाती है। मान्सी भी बाहर आते हुए भुजंग नाथ तुम्हें मालूम होना चाहिए पहले हम तीनो सहेलीया थी पर अब सबकुछ बदल गया है। अब ये देखना होगा कौन ज्यादा आगे जाता है। तभी वहा भुजंग नाथ के गुरु आते दिखाई दिए। उन दोनों ने गुरु को प्रणाम किया और बैठने को आसन दिया। तभी अंदर से बच्चे के रोने कि आवाज आयी। मठ के अंदर से एक दासी बाहर आयी। उसके हाथ मे एक सुंदर बच्ची है महाराज को बहुत सारी शुभकामनाये बच्ची हुई है। भुजंग नाथ भेट देते हुए बच्ची को अपने हाथों मे लेता है। बच्ची को गुरुजी कि ओर बढ़ाते है। गुरुजी उसकी ओर देखते हुए इसका नाम कुमारी होगा इसमें मायावी शक्तियाँ और एक मानव योद्धा के गुण होंगे समय आने पर ये सत्य का साथ देने वाली होगी। एक दिन इसके सारे अपने इसके खिलाफ होंगे। एतिहात में हुई गलतियों को सुधारने के लिए हि इसका जन्म हुआ है। मान्सी- गुरुजी अब मुझे जाने कि आज्ञा प्रदान करें। मुझे भी आज एतिहात का एक और पन्ना लिखने जाना है, चाहे वो गलत हो या सही। गुरुजी से आज्ञा पा कर मान्सी अपने रथ मे बैठ गई और महल आ कर सभी को सभा मे उपस्थित होने का सन्देसा भेज दिया। कुछ देर में सभी सभा के सदस्य वहाँ आ गए। मान्सी - सभी मेरी बात ध्यान से सुने हमें अभी युद्ध के लिए जाना है। कंचन वन कि ओर तत्काल युद्ध कि तैयारी मे जुट जाए। सेनापति - उस ओर तो हमारा कोई भी दुश्मन नहीं फिर... मान्सी- सेनापति चतुकार हमने जो कहा उसपर अमल हो। और सुनो हम महाराजा केशव से युद्ध के किये जा रहे है। उन्हें सिर्फ मेरे साथ रहना होगा या फिर परलोक जाना होगा। अब जाओ और कोई कुछ कहना चाहता है। ज्योतिष रेनू - जी महारानी मेरा मत है ये फैसला सही नहीं है। क्योकि अभी आपकी राशि गणना के अनुसार युद्ध योग नहीं बन रहे। मान्सी- तो क्या केशव को मेरे दुश्मन के साथ छोड़ दूँ। सेनापति - महारानी मैं हूँ ना सभी को मर कर केशव को बंदी बना कर ले आता हूँ। मान्सी- हँस्ते हुए जाओ सेनापति खाली हाथ आना। यदि ऐसा हुआ तो मौत तुम्हारा यहाँ भी इंतजार करेगी जाओ उसे लेकर आओ। जी महारानी बोल कर सेनापति सभा से बाहर चला गया। मान्सी ने सभा समाप्त कि घोषणां कि। फिर वहाँ से अपने कमरे कि ओर चली।

सभा मे एक ऐसा पुरुष भी था जिसने कुछ समय पूर्व हि अपने बच्चे और पत्नी का अंतिम संस्कार किया था। उसके मन मे क्रोध कि आग लग गई थी। उसका नाम है करतार सिंह उसने सभा से निकलते कि अपने घोड़े पर सवार होकर सीधे कन्चन वन का रास्ता पकड़ा तेज रफ्तर घोड़े से वाह सीधे कन्चन वन मे प्रवेश कर गया।

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