गुरुवार, जून 23

अग्निवीर p1



अग्निवीर

काली घनी रात मे मुरारीलाल एक एक कदम बड़ा रहा है। उसे रास्ते मे कई जानवरों कि आवाजें आ रही है। मुरारीलाल बड़ी हिम्मत लगा कर आगे बढ़ रहा है। तभी उस सड़क पर एक ट्रक आता दिखाई देता है। जो पूरी तरह से अनियंत्रित होकर मुरारीलाल के पास पलट जाता है। और उसकी मिट्टी मे मुरारीलाल दब जाता है। उसके हाथ पैर और गले तक मिट्टी से दब जाता है। मिट्टी मे मुरारीलाल बहुत निकलने कि कोशिश करता है। उसके हाथ पैर हिल भी नहीं पाते । जोर जोर से काओ कि आवाजें आती है। तभी मुरारीलाल कि नज़र उस मिट्टी के ढेर पर पड़े बड़े से पत्थर पर पड़ती हैं। वो पत्थर वहा से फिसला है। और मुरारीलाल के मुँह कि ओर बढ़ता है। मुरारीलाल अपनी आँखे बंद करके दूसरी तरफ अपना सिर घूमता है। और उसकी नींद टूट जाती है। वह देखता है। उसके पास हि उसकी पत्नी मंदाकिनी उसे देख रही है। मंदाकिनी, मुरारीलाल को पसीने लत पत देख कर। मुरारीलाल का पसीना पोछ्ते हुए मैं जानती हु हमें अपने राज्य को छोड़ना पड़ा नौ महीने अब पूरे होने वाले है। ये बुरी ताकतें हमारे साथ आती हि रहेगी। क्योंकि वो जानती है। उनका काल मेरी कोख मे है। अब वो वक्त आ गया है। हमें हमारे राजगुरु से मिलना होगा। मुरारीलाल - हा मंदाकिनी मिलना तो है पर कैसे? राजगुरु और सभी राज सेवक उनकी कैद मे है। फिर हमारा मार्गदर्शन कौन करेगा? मंदाकिनी- जब उनका काल आ हि रहा है तो रास्ता भी होगा।बस वो हमें नज़र नहीं आ रहा। अब तो गुरुजी हि कुछ करेंगे। तभी उनके घास पूस के घर मे एक रोशनी उत्पन्न होती है। और उस रोशनी के बीच राजगुरु दिखाई दे रहे है। राजगुरु को सामने देख दोनों ने प्रणाम किया। आशिर्वाद देते हुए राजगुरु- राजन मैं अपनी योग सक्ती से आप तक आया हूँ। हमारे देश मे चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है। जो उनके साथ हुए वो अत्याचारी धूर्त बन गए, जिन्होंने उनका साथ नहीं दिया वो मारे गए या बंदी बना लिए गए। महाराज आप यहाँ से पूर्व कि ओर जाओ अब आप के लिए यहाँ रुकना सही नहीं है। आपको पूर्व कि ओर पलाश वन मे प्रवेश करना होगा। वहाँ पर एक सफ़ेद पलसा का पेड़ होगा। उसी के पास पल्लवी ऋषि का आश्रम है। आप दोनों वहाँ यचना लेकर जाओ वो आप कि मदद जरूर करेंगे। ऐसा बोलकर वे अन्तर्ध्यान हो गए। वो दोनों उस घर से बाहर आए। और मुरारीलाल ने भीमा को आवाज लगायी। भीमा हा मुरारीलाल सुबह सुबह क्यूँ चिल्ला रहे हो। पास में आ कर, जी महाराज क्या आदेश है। भीमा हमारे चलने का वक्त आ गया है। सभी को लाल संदेश भिजवा दो अभी। जी महाराज। भीमा अपने घर के बाहर एक लाल रंग का झंडा फहरा देना है। कुछ हि छनो पस्चात वहाँ बहुत से साधु साध्वी इक्कठा होने लगे। मुरारीलाल उन सभी के बीच मे जाकर खड़ा हो जाते है। और कहते है। मेरे सभी साथियो आप इस विषम परिस्थितयों मे मेरा साथ दे रहे है उसके लिए आप सभी का धन्यवाद। गुरूजी के आदेश अनुसार हम यदि यहाँ और रुके तो मुस्किले बढ़ने वाली है। अतः गुरुजी के बताए गोपनीय मार्ग पर हम सब को अभी चलना है। आप सभी अपने साथ खाने पीने कि सभी वस्तुए रख ले। अगला संकेत मिलते हि हम पूर्व दिशा कि ओर प्रस्थान करेगें। सभी लोग वहाँ से चलें गए।

गुलामी कि जंजीरो मे जकड़े कई गुलामो को कोड़े कि मार मारते सैतानी लोग। खून के आंसू रोने को मजबूर वहाँ कि जनता, जिनसे जी भर काम करवाते है फिर उन्हें मारते है, काटते है और खा जाते है।बड़े से राजमहल मे चारों ओर बुराई और मौत नाच रही है। यहाँ एक से बढ़ कर एक भूत प्रेत आत्मा दानव तांत्रिक सब एक साथ है। और इन सबकी रानी है मान्सी। मान्सी बहुत हि खूबसूरत और जवान है। लेकिन उसके भाव सही नहीं उसकी आँखे तेज कटार कि धार है। उसके काले घने खुले हुए केश, उसके घुटने तक लटक रहे है। जवानी कि आग मे जलती मान्सी गुस्से से लाल चेहरा, हाथो मे रूह दण्ड लिए कारागार कि ओर बढ़ती है। जैसे जैसे मान्सी आगे बढ़ती है क्या दांनाव क्या दैत्य सब अपना समर्पण कर देते है। मान्सी को देखते हि सब ज़मीन पर लेट जाते है। और प्रणाम करने लगते है। दोनों हाथ जोड़ कर राजगुरु को मान्सी का प्रणाम(घमंड से भरी मुस्कान के साथ)।राजगुरु- तुम यहाँ क्यूँ बार बार आती हो? मैं तुम्हें कभी भी नहीं बताने वाला कि वो कहा है। चाहे तुम मुझे मार हि क्यूँ ना दो। मान्सी- नहीं गुरुजी आप को मैं नहीं मारूंगी और मुझमें इतनी सक्ती नहीं, कि मैं आप का मुकाबला कर सकू। आप तो कैद मे हि रहो और बस देखते जाओ क्या हाल करती हूँ मैं इस राज्य का।( मुँह बनाते हुए) और रही उसकी बात तो उसे तो मैं पा कर हि रहूंगी। राजगुरु- मानसी तुम कभी भी कामियाब नहीं हो सकती। गलत रास्ते पर मंजिल नहीं मिलती और ये तुम्हारी जीत को हार मे बदलने तुम्हारे अत्याचार को समाप्त करने वो जन्म लेने हि वाला है। मान्सी - राजगुरु मेरी मौत कि कामना करने से पहले उन्हें मुझसे बचाने कि कामना करो, क्योंकि वो सिर्फ मेरा है और किसी का नहीं। इस तरह बोलती हुई मान्सी राजदारबार कि ओर बढ़ती है। मान्सी को दरबार मे आता देख सभी ज़मीन पर लेट जाते है। और मान्सी सिंहासन पर बैठ जाती है। सभी लोग उठ कर अपने स्थानों पर बैठ जाते है। मान्सी - किसी को कुछ कहना है? खड़े होकर कहो।(कोई भी खड़ा नहीं होता तब) कोई कुछ नही कहना चाहता? सभी लोग जाओ अपना अपना काम करो जाओ। सेविका चारू जाओ मेरे लिए नवजत जीव या मनुस्य का खून ले आओ। चारू तुरंत बाहर से एक बच्चे को गोद मे लिए प्रवेश करती है। उसके साथ हि एक महिला रोती बिलखती चारू के पीछे आ जाती है। क्रूर चारू कहती है सैनिको पकड़ लो इस औरत को। फिर वहाँ एक खप्पर लाया जाता है। उस बच्चे की माँ बार बार चारू से कहती है उसे छोड़ दो। पर चारू कुछ भी सुने बिना, एक हि वार मे बच्चे का सिर गले से अलग कर देती है। बच्चे का सिर उसकी माँ के सामने गिरता है। चारू के हाथ मे बच्चे के पैर है उसका धड नीचे लटक रहा हैं। उससे निकलती खून कि धार खप्पर मे जमा को रही है। तभी बच्चे कि माँ - ये पापिनी सुन मैं तुम्हें श्राप देती हूँ तुम्हारी मौत का कारन मेरे बच्चे का खून बनेगा। ऐसा बोल कर वो भी ज़मीन पर गिर कर अपने प्राण त्याग दिए।

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