शुक्रवार, मार्च 25

Girnar tirth yatra गिरनार महातीर्थ

आज होली कि छुट्टी है, काम पर जाना नहीं हैं। सुबह जल्दी हि तैयार हो गया हू, क्योंकी आज मुझे गिरनार महातीर्थ यात्रा करने जाना है। मैं जल्दी हि NH 27 हीरासागर रास्ते पर आ गया हूँ। कुछ देर इंतजार करने पर मुझे यहाँ से कुवडवा के लिए बस मिल गई। सुबह का समय है चारों तरफ घाना अंधेरा है। थोड़ी देर बाद ही कुवडवा पहुचा। कुवडवा मे नास्ता किया फिर बस स्टेशन के लिए पैदल हि चला। अब थोड़ा थोड़ा उजाला हो गया है। मुझे एक मोटरबाइक वाला भैया मिला है। उसने मुझे पैदल चलते देख मोटरबाइक रोकी और मुझसे मेरे बारे मे परिचय लिया है। फिर मुझे मोटरबाइक पर बैठा कर बस स्टेशन तक पहुचा दीया। यहाँ से मैं राजकोट कि बस मे बैठा। राजकोट पहुचते पहुंचते सूरज निकल है। बहुत हि अच्छा लग रहा है। राजकोट से मैंने दूसरी बस ली है। मुझको यहाँ से अब जूनागढ़ जाना है। सुबह आठ बजे है मैं जूनागढ़ आ गया हु।जूनागढ़ बहुत बड़ा बाजार है । यहाँ बाजार से मैंने एक महाकाल लिखा हुआ स्कार्फ खरीदा धूप तेज हो रही है इसलिए एक कैप भी खरीद लिया। इस बाजार मे कई सारी चीज़ है नरियाल फुल फल कपड़े आदि। मैंने अपनी जरुरत के अनुसार सामान खरीद लिया है। अब मैंने गिरनार यात्रा पहाड़ी कि ओर कदम बढ़ना शुरू किया। रास्ते मे कुछ लोग है जो teliscop दूरबीन से कुछ दिखा रहे है। मैंने पूछा तो उन्होंनेे मुझे बताया यदि कोई यहाँ से माँ अम्बाजी मंदिर के दर्शन करना चाहते है तो सिर्फ पाच रू मे देख सकता है। मुझे तो वहाँ जाना हि है फिर यहाँ से क्या देखना । फिर आगे बड़ा पास हि एक मंदिर है। सामने से बहुत बड़ा है। उसके मुख्य गेट पर रघुनाथ द्वार लिखा है, एक शिव मूर्ति भी लगी है। मैं मुख्य द्वार से अंदर आया। अंदर बहुत हि सुंदर मंदिर है सभी खम्बे सोनेगर्भशय ह्ग से रंगे हुए है । मंदिर के गर्भग्रह मे शिवलिंग है। देखने मे बहुत सुंदर है। मन्दिर के प्रांगण मे और भी छोटे-छोटे मंदिर है जिनमें बहुल से अलग अलग देवी देवता विराजमान है। सभी कि पूजा अर्चना करके मैं गिरनार यात्रा के अगले पड़ाव कि ओर आगे बढ़ने लगा। रघुनाथ द्वार घुमने मे मुझे दस बज गये है। धूप तेज हो गई है। गिरनार कि पहाड़ी चढना शुरू कर रहा हूँ। चढ़ते-चढ़ते देख रहा हूँ। सीढ़ियों के दोनों ओर दुकाने है दुकानों मे पुस्तके है कहीं कोल्डड्रिंक है कहीं फल है। खाने पीने कि सभी चिजे है। पहला द्वार के साथ हि सीढियो कि शुरुआत हो रही है। सीढ़ियों को प्रणाम किया और आगे चढने लगा। टेडा मेडा रास्ता है। उची उची परवत स्रन्खलाये है बड़े बड़े पत्थर है। दूसरे द्वार तक पहुचते हुए दिन के बारह बज गए हैं। गर्मी बहुत है धूप भी तेज है सूरज सीधे आशमा पर है। थोड़ा आराम करके आगे चलने लगा हूँ। शरीर से पसीने कि धार बहने लगी है फिर भी मुझे उत्सह है बड़े बड़े पेड़ है। और बन्दर भी है वो सभी शांत है और पेड़ो कि छाव मे है। मेरे पैरों मे अब दर्द होने लगा है। रास्ते मे कुछ भक्त मेरे साथ ही है। बीस पच्चिस पीढियां चल कर आराम करता हू फिर आगे बढ़ता हूँ। एक बजे मैं तीसरे द्वार आ गया हूँ। यह किले कि संरचना वाला बहुत बड़ा द्वार है। द्वार के दोनों ओर कि दिवार पर सैनिकों कि कलक्रति उकेरि हुई है। देखने मे बहुत सुन्दर है। द्वार को पर करते हि बौध मंदिर मिलते है। लगभग पचास बौद्ध मंदिर है उनपर तरह तरह कि कलाक्रतिया बनी हुई है। मंदिरो को पर करते हि चोथ द्वार है। इस द्वार को पार करके मैं माँ रजोला गुफा मे आया। माँ रजोला के पास जाने के लिय गुफा है। गुफा के सामने स्पस्ट शब्दोंं मे लिखा है पाँच लोगों के अधिक प्रवेश ना करें। गुफा का मुख बहुत छोटा है एक आदमी को जाने के लिए बैठ कर प्रवेश करना होता है मैं भी अंदर गया। पत्थरो के बीच सुरंग जैसा है। माँ रजोला गुफा मे एक पत्थर पर उकेरि हुई मूरत है। मैंने भी माँ का आशीर्वाद लिया।फिर आगे कि यात्रा चलने लगा। यहाँ से आगे का रास्ता और भी कठिन हो गया है। सिधि खड़ी चढ़ाई है। कहीं कहीं खाई है। और अब दुकाने भी नहीं है। गाला बार बार सुख जाता है। एक एक घुट पानी से गाला गीला कर लेता हूँ। नीचे देखता हूँ सारा शहर छोटा सा दिखता है । छोटे-छोटे घर और मन्दिर दिखाई देता है। तीन बजे मैं माँ अम्बाजी मंदिर पहुच गया। मन्दिर बहुत उचाई पर बना है। भक्तो कि बहुत भीड़ है। मंदिर मे प्रवेश करते हि सामने एक सिंह दिख रहा है। उसके सामने माँ कि ज्योतिर्लिंग है। मंदिर मे  LED लगी है दर्शन हो रहे है। माँ के दर्शन करने के बाद बाहर आ गया। माँ कि कथा के अनुसार जब सती माता के खंड हुए, तब माँ का उदर यहाँ गिरा था। तब से यहाँ माँ अम्बाजी सक्तीपीठ के रूप मे यहाँ है। यहा आने के लिए लिफ्ट भी है। अभी हमारी यात्रा समाप्त नहीं हुई। मुझे रस यात्रा को श्री गुरु दत्तात्रेय धाम तक ले जाना है। यहा छोटा सा बाज़ार है। जहां मैंने नास्ता किया।फिर चलने लगा। सूरज का तेज अब कम हो गया है। ठंडी-ठंडी हवा चल रही है। आस पास पेड़ के आलावा दूर दूर तक कुछ नहीं दिख रहा है। करीब पाँच सौ सीढ़ी के बाद पाचवा द्वार मिला श्री गुरु दत्तात्रेय द्वार एवं संस्थान यहाँ से दो अलग अलग रास्ते है। मैंने खाना नहीं खाया है तो मैं  श्री गुरु दत्तात्रेय संस्थान आ गया। यहाँ खाना पानी कि हर भक्त के लिए फ्री उपलब्ध है। मैंने खाना खा कर आराम किया और फिर आगे यात्रा आरम्भ कर दी। पाच बजे मैं श्री गुरु दत्तात्रेय मन्दिर गिरनार घाटी के सबसे उचे शिखर पर खड़ा हूँ। चारो ओर सिर्फ पर्वतों के शिखर दिखाते है ऐसा लगता है जैसे सभी पर्वतों ने पेड़ो कि चादर ओढ़ ली है संध्या काल है सूरज अब अस्त होने हि वाला है। पश्चिम दिशा लाल केशरिया रंग से चमक रही है। मैंने मन्दिर मे प्रवेश किया । श्री गुरु दत्तात्रेय गाय पर विराजमान है। उनके तीन सिर है। एक सर भगवान  ब्रह्मा का दूसरा भगवान विष्णु का और तीसरा भगवान शिव का है। उनके चार हाथ है। कथा के अनुसार एक बार त्रिदेवों ने सती अनुसुया कि परीक्षण लेने गए। तो माता ने उन्हें सिसु रूप मे बदल दिया। और स्तनपान कराया। जब त्रिदेवी ने उन्हें वापिस बड़ा करने का आग्रह किया तो माता ने उन्हें बड़ा कर दिया। तब तीनो देवताओं ने उन्हें पुत्र रूप मे जन्म लेने का वरदान दिया। इस तरह श्री गुरु दत्तात्रेय का जन्म हुआ। 

Today is Holi holiday, do not go to work.  I have got ready early in the morning, because today I have to go to Girnar Mahatirth Yatra.  I am soon on NH 27 Hirasagar road.  After waiting for some time, I got a bus from here to Kuvadva.  It is morning, it is dark all around Ghana.  After a while Kuvdva reached.  Had breakfast at Kuvadva then walked to the bus station.  It's got a little light now.  I've got a motorbike brother.  Seeing me walking, he stopped the motorbike and introduced me to me.  Then seated me on a motorbike and took me to the bus station.  From here I sat in Rajkot bus.  On reaching Rajkot, the sun has set.  Looks very good.  I have taken another bus from Rajkot.  I have to go to Junagadh from here.  It is eight o'clock in the morning, I have come to Junagadh. Junagadh is a very big market.  Here from the market I bought a scarf with Mahakal written on it, the sun is getting hot, so I also bought a cap.  There are many things in this market, nariyal full fruit clothes etc.  I have bought items as per my requirement.  Now I started walking towards Girnar Yatra hill.  There are some people on the way who are showing something with a telescope.  When I asked, he told me that if anyone wants to visit the temple of माँ अम्बाजी from here, then he can see it only for Rs.  I have to go there then what to see from here.  Then there is a temple next to it.  The front is much bigger.  रघुनाथ द्वार is written on its main gate, a Shiva idol is also installed.  I entered through the main door.  There is a very beautiful temple inside, all the pillars are painted with gold.  There is a Shivling in the sanctum sanctorum of the temple.  Very beautiful to look at.  There are other small temples in the courtyard of the temple, in which many different deities are seated.  After worshiping everyone, I started moving towards the next stage of the Girnar Yatra.  It is ten o'clock for me to go to रघुनाथ द्वार.  The sun has risen.  I am starting to climb the hill of Girnar.  I'm watching it climb.  There are shops on both sides of the stairs, there are books in the shops, somewhere there is cold drink, somewhere there is fruit.  There are all things to eat and drink.  With the first door, the stairs are beginning.  He saluted the stairs and started climbing forward.  Teda Meda is the way.  High mountain ranges are made of big stones.  It is twelve o'clock in the day to reach the second door.  It is very hot, the sun is also strong, the sun is directly on the sky.  After taking some rest, I started walking.  Streams of sweat have started flowing from the body, yet I am excited that there are big trees.  And there is a monkey too, all of them are calm and are in the shade of trees.  My feet are starting to hurt now.  Some devotees are with me on the way.  After walking for twenty-five generations, I rest and then I move forward.  At one o'clock I have come to the third door.  This is a huge gate with the structure of the fort.  On either side of the door, there is a sculpture of soldiers on the wall.  Very beautiful to look at.  By doing at the door, we find a Buddhist temple.  There are about fifty Buddhist temples, various types of artwork have been made on them.  There is a door to the temple.  After crossing this gate, I came to Maa Rajola cave.  There is a cave to go to Maa Rajola.  It is written in clear words in front of the cave, do not enter more than five people.  The cave's mouth is very small, a man has to sit and enter to go, I also went inside.  It is like a tunnel between the stones.  There is an idol carved on a stone in the Maa Rajola cave.  I also took the blessings of my mother. Then the further journey started.  From here the road ahead becomes even more difficult.  Sidhi is a steep climb.  Have eaten somewhere.  And now there are no shops.  The throat gets dry again and again.  I wet my throat with suffocating water.  Looking down, the whole city looks small.  Small houses and temples are visible.  At three o'clock I reached the माँ अम्बाजी temple.  The temple is built at a very high height.  There is a huge crowd of devotees.  A lion is visible in front of him as he enters the temple.  In front of him is the Jyotirlinga of the mother.  There is an LED installed in the temple.  He came out after seeing his mother.  According to the story of the mother, when Sati Mata broke up, her abdomen fell here.  Since then माँ अम्बाजी is here in the form of Saktipeeth.  There is also a lift to reach here.  Our journey is not over yet.  I have to take the Ras Yatra to Sri Guru Dattatreya Dham.  There is a small market here.  Where I had breakfast. Then started walking.  The brightness of the sun has diminished now.  A cold wind is blowing.  Apart from the trees around, nothing is visible far and wide.  After about five hundred steps, the fifth door was found, Sri Guru Dattatreya and Sansthan, there are two different paths from here.  I have not eaten food, so I came to श्री गुरु दत्तात्रेय.  Here food and water is available free to every devotee.  I took rest after having food and then started the journey further.  At five o'clock I am standing on the highest peak of श्री गुरु दत्तात्रेय Mandir Girnar Valley.  All around, only the peaks of the mountains are shown, it seems as if all the mountains have covered the sheets of trees, it is evening, the sun is about to set.  The west direction is shining with red saffron color.  I entered the temple.श्री गुरु दत्तात्रेय is seated on a cow.  He has three heads.  One head belongs to Lord Brahma, the second to Lord Vishnu and the third to Lord Shiva.  He has four hands.  According to the legend, once the Tridevs went to take the test of Sati Anusuya.  So the mother changed him into Sisu form.  and breastfed.  When Tridevi requested to bring him back, the mother raised him.  Then all the three gods gave him a boon to be born as a son.  Thus श्री गुरु दत्तात्रेय was born.

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